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ब्रांड | राठी पॉलीप्लास्ट |
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किट का प्रकार | इनलाइन ड्रिप सिंचाई किट |
सिंचाई प्रणाली | सिंचाई की एक विशेष विधि है जिसमें पानी और खाद की कम मात्रा में भी अधिक फसल उगाई जा सकती है। भूमि, जल, मौसम और फसलों का अध्ययन कर कम दबाव और निरंतरता के साथ फसलों की जड़ों तक सीधे आवश्यकतानुसार एक समान पानी देना ड्रिप सिंचाई कहलाती है। |
→ | इस प्रणाली से भूमि की नमी के गतिशीलता को बनाये रखा जाता है और फसल की जड़ भूमि के निचले हिस्से तक फैलाई जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि अन्य पद्धतियों की तुलना में जल उपयोग क्षमता, पानी रिसने की समस्या से बचाव, और अधिक उत्पादन मिलता है। |
विशेषताएँ | पानी और खाद सीधे फसल को दिया जाता है। |
* | भूमि की नमी बनाए रखता है। |
** | जल उपयोग क्षमता उच्च होती है। |
*** | क्षेत्र क्षमता अधिक होती है। |
**** | फसल उत्पादन बढ़ता है। |
***** | समय और श्रम बचत होती है। |
सिंचाई के उद्देश्य | ड्रिप सिंचाई पद्धति का प्रमुख उद्देश्य जल उपयोग क्षमता में वृद्धि, एक समान जल प्रदान करना और उन्नत फसल उत्पादन करना है। |
सिंचाई के प्रकार | इनलाइन - इस पद्धति में ड्रिप लेटेरल को ऊपर आवश्यक दूरी पर लगाया जाता है। इसमें ड्रिपर नली के ऊपर खुद की बनाई जाती है। यह पद्धति बृहद्फल, वृक्ष जो निरंतर फसलों का उत्पादन करते हैं उनके लिए उपयुक्त है जैसे आम, अमरूद, संतरा, नारियल, मौसम्बी, नींबू, अंगूर, अनार, बेर, पपीता, सागवान इत्यादि। इस प्रणली में ड्रिपर्स शामिल है |
इन लाइन | इसमें गोल एवं प्लेन ड्रिप का प्रयोग होता है। इसमें लेटरल्स के अंदर के निर्धारित दूरी पर निश्चित दबाव के दौरान ही ड्रिप्स फिट लगाये जाते हैं। गन्ना जैसी फसलों के लिये यह अत्यन्त उपयोगी मानी गयी है। यह पद्धति धान की खेती, फलों की खेती और स्टेबल जड़ों वाली फसल के लिए उपयुक्त है। इसमें ड्रिप्स की सहायता से पानी की आवश्यकता के अनुसार वितरण किया जाता है। इस पद्धति में दो ड्रिप्स की मदद से अन्य पद्धतियों का उपयोग किये बिना पानी की आवश्यकता पूरी की जा सकती है। |
पानी का वितरण | गुरुत्वाकर्षण धक्का प्रणाली.पाइप को 7-8 फीट की ऊंचाई पर रखे एक टैंक से जोड़ा जाता है जो मुख्य पाइप के माध्यम से पानी खेतों तक पहुचाता है |
सिंचाई के लाभ | पानी-ड्रिप सिंचाई में 30-80 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। इस प्रकार बचे हुए जल से अधिक क्षेत्र की सिंचाई की जा सकती है। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में भी ड्रिप सिंचाई का उपयोग किया जा सकता है और फसलों का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। जल का संतुलन बनाये रखते हुए कम पानी में फसलों की सिंचाई करने हेतु ड्रिप सिंचाई एक मान्य साधन है। |
भूमि | ऊबड़-खाबड़, बंजर जमीन और समुंद्र तटीय भूमि भी ड्रीप के उपयोग में लाई जा सकती है। भूमि का धूप का होने वाला अधिकता को रोका जा सकता है। परम्परागत पद्धति में नालियों का निर्माण करके सिंचाई करने से जमीन जिस तरह खराब होती है उस प्रकार से ड्रीप पद्धति में नहीं होती है। अनुपयुक्त खेती वाली भूमि, बंजर वाली भूमि और अनुपयुक्त भूमि, क्षारुक्त भूमि एवं इस पद्धति से खेती हेतु उपयोग में लाई जा सकती है। |
रासायनिक खाद | ड्रीप इन लाइन पद्धति से रासायनिक खाद की जरुरत में 30-45 प्रतिशत तक कमी होती है और फसल की उत्पादकता में कमी होती है। एमिन को समान रूप से खाद पहुँचाई जाती है और खाद का अधिक प्रभाव उपयोग होता है। |
खरपतवार | ड्रीप इन लाइन सिंचाई में पानी सीधे फसल की जड़ों में दिया जाता है। आस-पास की भूमि सूखी रहने से अनावश्यक खरपतवार विकसित नहीं होते हैं। जिसके परिणामस्वरूप भूमि में उपलब्ध तत्व केवल पौधों को ही प्राप्त होते हैं। |
फसल में कीट एवं रोगों का कम प्रकोप | ड्रीप इन लाइन पद्धति में दूध, पौधों के स्वास्थ्य में विकार होता है। इसके फलस्वरूप कीटनाशकों, फफूंद नाशकों की कम मात्रा में आवश्यकता होती है जिससे कीटनाशकों, फफूंद नाशकों पर होने वाले खर्च में कमी होती है। |
पैकजिंग में शामिल | प्लास्टिक डिस्क फ़िल्टर 2,एचडीपीई कॉइल 63 एमएम 4केजी सीएम2,एचडीपीई एंड कैप 63 एमएम,उत्सर्जक पाइप आईडी 16 MM-2LPH-0.30Mtr,लेटरल पेप्सी कॉक टिप,रबर ग्रोमेट,कांटेदार कनेक्टर/जॉइनर 16 एमएम,लाइन एंड 16एमएम (8 प्रकार 16-18एमएम) |