खड़ी फसल में बहुत से रोग लगते हैं,जैसे अल्टरनेरिया, गेरुई या रतुआ एवं ब्लाइट का प्रकोप होता है जिससे भारी नुकसान हो जाता है इसमे निम्न प्रकार के रोग और लगते हैं जैसे काली गेरुई, भूरी गेरुई, पीली गेरुई सेंहू, कण्डुआ, स्टाम्प ब्लाच, करनालबंट इसमें मुख्य रूप से झुलसा रोग लगता है पत्तियों पर कुछ पीले भूरे रंग के लिए हुए धब्बे दिखाई देते हैं, ये बाद में किनारे पर कत्थई भूरे रंग के तथा बीच में हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं
पॉड बोरर:
युवा लार्वा पत्तियों पर कुछ समय रहकर उन्हें खाता है और फिर बलियो पर हमला करता है. बलियो को अंदर पूरी तरह से खोखला कर देता है|
काला तना रतुआ:
गेहूं की फसल का यह रोग प्रभावित पौधों के तने, पत्तियों और डंठलों के ऊपर लाल भूरे रंग के छोटे-छोटे धब्बे बना देता हैं, जो धीरे-धीरे बड़े होकर आपस में मिलकर बड़े-बड़े धब्बे बन जाते हैं एवं इनका रंग गहरा भूरा तथा बाद में काला हो जाता है| रोग से प्रभावित पौधों की ऊँचाई घट जाती है, बालियों में दाने कम, सिकुड़े हुए एवं भार में हल्के उत्पन्न होते हैं|
करनाल बंट:
करनाल बंट को गेहूं का कैंसर भी कहा जाता है| रोग के लक्षण बाली में दाने बनने के बाद ही दिखायी पड़ते हैं| संक्रमित बाली के कुछ दाने आंशिक रूप से काले चूर्ण में बदल जाते हैं|
गेगला या सेहूँ रोग:
रोगी पौधों की पत्तियां ऐंठकर झुर्रीदार और विकृत हो जाती हैं एवं तना लम्बा हो जाता है| रोग से प्रभावित कुछ पत्तियों पर छोटी, गोलाकार उभरी हुई पिटिकायें बनती हैं और रोगी पौधे से निकली बालियां छोटी, मोटी और अधिक दिनों तक हरी बनी रहती हैं|
पर्णीय झुलसा या अंगमारी:
रोग के लक्षणों में सर्वप्रथम निचली पत्तियों पर छोटे-छोटे, अण्डाकार, भूरे रंग के और अनियमित रूप से बिखरे हुए धब्बे आपस में मिलकर पत्ती का अधिकांश भाग ढक देते हैं|
भूरा रतुआ:
प्रारम्भ में गेहूं की फसल के इस रोग के लक्षण पत्तियों की उपरी सतह पर अनियमित रूप से बिखरे हुए छोटे गोलाकार और हल्के नारंगी रंग के धब्बों के रूप में प्रकट होते हैं| बाद में धब्बे पत्तियों की दोनों सतहों पर बन जाते हैं| रोग ग्रसित पौधे छोटे रह जाते हैं, बालियों में दाने कम और सिकुड़े हुए बनते हैं|
पीला रतुआ या धारीदार किट्ट:
रोग के लक्षण पत्तियों पर पिन के सिर जैसे छोटे-छोटे, अण्डाकार, चमकीले पीले रंग के धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं, जो पत्ती की शिराओं के बीच में पंक्तियों में होने से पीले रंग की धारी बनाते हैं| बाद में पत्ती की बाहरी त्वचा के नीचे काले रंग के रेखाओं के रूप में बनते हैं, जो चपटी काली पपड़ी द्वारा ढके रहते हैं| रोग ग्रसित पौधों की पत्तियां सूख जाती हैं|
हिल अथवा पहाड़ी बंट:
रोग से प्रभावित पौधे छोटे रह जाते हैं, समय से पूर्व ही पक जाते हैं| रोगी पौधे की बालियाँ संकीर्ण और लम्बी निकलती हैं, जो नीला-हरा रंग लिए होती हैं| बाली में दानों के स्थान पर काले रंग का चूर्ण भर जाता है और रोगी बालियों को दबाने पर सड़ी मछली जैसी दुर्गन्ध आती है|
चूर्णिल आसिता:
भावित पौधे की पत्तियों पर भूरे सफेद रंग के चूर्ण के ढेर दिखायी देते हैं| रोग की उग्र अवस्था में पर्णछंद, तना आदि भी भूरे-सफेद चूर्ण से ढक जाते हैं| रोग ग्रसित पौधों द्वारा दाने छोटे और सिकुड़े हुए उत्पन्न होते हैं|